Atma-Bodha Lesson # 41 :
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आत्म-बोध के 41st श्लोक में आचार्यश्री हमें पिछले श्लोक में बताये गए आत्मा-अभ्यास के विषय पर एक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से प्रकाश डालते हैं। यह बिंदु है - त्रिपुटी का। त्रिपुटी के अन्दर ही हम सब का पूरा संसार चलता है। जबतक त्रिपुटी है तब तक संसार और संस्करण चलता रहता है। त्रिपुटी बोलते हैं ज्ञाता-ज्ञान और ज्ञेय के भेद को। इस बात पर ध्यान दीजिये - की हम लोगों के समस्त अच्छे-बुरे व्यवहार सभी इस त्रिपुटी के अंदर ही चलते हैं। फिर भले ज्ञाता हो, अथवा दृष्टा हो, श्रोता हो आदि। देखने वाला अलग है, देखने वाली वस्तु अलग है, और इन दोनों के संस्पर्श से उत्पन्न दर्शन अलग है। यहाँ आचार्य बोलते हैं की परमात्मा में ये तीनों नहीं होते हैं। ये तीनों मूल रूप से चिदानंद रूप ही हैं - जो एक है, अखण्ड है, और जो स्वतः प्रकाशित होती है।
इस पाठ के प्रश्न :
१. त्रिपुटी किसे कहते हैं?
२. त्रिपुटी का अस्तित्व क्यों आता है?
३. परमात्मा में त्रिपुटी क्यों नहीं होती है?
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