show episodes
 
*कहानीनामा( Hindi stories), *स्वकथा(Autobiography) *कवितानामा(Hindi poetry) ,*शायरीनामा(Urdu poetry) ★"The Great" Filmi show (based on Hindi film personalities) मशहूर कलमकारों द्वारा लिखी गयी कहानी, कविता,शायरी का वाचन व संरक्षण ★फिल्मकारों की जीवनगाथा ★स्वास्थ्य संजीवनी
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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हम अक्सर रोज की जिंदगी में सुकून भरे और दिल को तरोताजा रखने वाले पल ढूंढते हैं. शायरी सुकून आपको ऐसे ही पलों की बेहतरीन श्रृंखला से रूबरू करवाता है. हमारी shayarisukun.com वेबसाइट को विजिट करते ही आपकी इस सुकून की तलाश पूरी हो जायेगी. यह एक बेहतरीन और नायाब उर्दू-हिंदी शायरियो (Best Hindi Urdu Poetry Shayari) का संग्रह है. यहाँ आपको ऐसी शायरियां 🎙️ मिलेगी, जो और कही नहीं मिल पायेंगी. हम पूरी दिलो दिमाग से कोशिश करते हैं कि आपको एक से बढ़कर एक शायरियों से नवाजे गए खुशनुमा माहौल का अनुभव करा स ...
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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Nayidhara Ekal

Nayi Dhara Radio

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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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shaam e shayari

Fanindra bhardwaj

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"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Hello Poetry lovers, Here I will Publish classic Hindi poems to enrich your soul. They will take your emotions from love, sadness to the next level. Expect poetry every 3 days. नमस्कार दोस्तों , आपका पोएट्री विथ सिड में स्वागत है. यहाँ पे कविताये सुनेंगे उन कवियों की जिन्हे हम भूलते जा रहे है. Cover art photo provided by Tom Barrett on Unsplash: https://unsplash.com/@wistomsin
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This Hindi Podcast brings to you in-depth conversations on politics, public policy, technology, philosophy and pretty much everything that is interesting. Presented by tech entrepreneur Saurabh Chandra, public policy researcher Pranay Kotasthane, and writer-cartoonist Khyati Pathak, the show features conversations with experts in a casual yet thoughtful manner. जब महफ़िल ख़त्म होते-होते दरवाज़े के बाहर, एक पुलिया के ऊपर, हम दुनिया भर की जटिल समस्याओं को हल करने में लग जाते हैं, तो हो जाती है ...
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show series
 
प्रिय श्रोतागण, आज 249वी पुलियाबाज़ी पर एक अनूठे विषय पर चर्चा प्रस्तुत है। हम ने लोकनीति, टेक्नोलॉजी और सांस्कृतिक विषयों पर काफ़ी बातचीत की है, लेकिन किसी भी भाषा के साहित्य पर बहुत ज़्यादा चर्चा नहीं हुई है। अमित बसोले जी के साथ भक्ति मार्ग के विषय पर बात करते वक़्त कुछ भक्ति काव्य की बात हुई थी, पर उस चर्चा में मुख्य विषय अलग था। आज की चर्चा का विष…
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लोक मल्हार | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन' सुन बहिना! मेरे जियरबा की बात उदासी मेरे मन बसी। सैंया तलाशें री बहना नौकरी देवर स्वप्न में फिल्‍मी छोकरी। मेरी बहिना, ननदी तलाशे भरतार, ससुर ढूँढे लखपति........मेरी बहिना! मैं ना पढ़ी , न मेरे बालका शोषण करे हैं मेरे मालिका मोइ न मिल्यौ री स्वराज । मेरी बहना गुलामों जैसी जिन्दगी । सुन बहना मेरे जियरबा की बात उदा…
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खुशी कैसा दुर्भाग्य | मगलेश डबराल जिसने कुछ रचा नहीं समाज में उसी का हो चला समाज वही है नियन्ता जो कहता है तोडँगा अभी और भी कुछ जो है खूँखार हँसी है उसके पास जो नष्ट कर सकता है उसी का है सम्मान झूठ फ़िलहाल जाना जाता है सच की तरह प्रेम की जगह सिंहासन पर विराजती घृणा बुराई गले मिलती अच्छाई से मूर्खता तुम सन्तुष्ट हो तुम्हारे चेहरे पर उत्साह है। घूर्त…
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इस पुलियाबाज़ी पर हमारे मेहमान हैं जावीद अहमद जी जो उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी रह चुके हैं, और एक आईपीएस अधिकारी के रूप में विभिन्न भूमिकाओं में काम कर चुके हैं। एक पुलिस अधिकारी को किन हालात में काम करना पड़ता है? उनकी कार्य परिस्थितियाँ कैसी हैं और पुलिस सुधारों की कमी हमारे समाज को कैसे प्रभावित करती है। आज पुलिया पर इन सब बातों पर खुलकर …
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चुपचाप उल्लास | भवानीप्रसाद मिश्र हम रात देर तक बात करते रहे जैसे दोस्त बहुत दिनों के बाद मिलने पर करते हैं और झरते हैं जैसे उनके आस पास उनके पुराने गाँव के स्वर और स्पर्श और गंध और अंधियारे फिर बैठे रहे देर तक चुप और चुप्पी में कितने पास आए कितने सुख कितने दुख कितने उल्लास आए और लहराए हम दोनों के बीच चुपचाप !…
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'ओन' सूरज का एक नाम था ,इसी लिए फ़िनिशियन्स ने जब यूरोप में एक नयी धरती की खोज की ,उसका नाम ऐल -ओन-डोन रखा ,जो आज लन्दन हैं। इंग्लैंड की जड़ें हिब्रू भाषा में हैं। बैल के लिए हिब्रू भाषा में 'ऐंगल' शब्द हैं। नई खोजी हुई धरती को उन्होंने ऐंगल-लैंड का नाम दिया ,जो आज इंग्लैंड है। नींद के होठों से जैसे सपने की महक आती है पहली किरण रात के माथे पर तिलक लग…
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सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितनी नदियाँ हैं कितने झरने हैं कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में कितनी गुफ़ाएँ हैं कितने वृक्ष हैं कितने फल हैं तुम्हारी गोद में कितने पत्ते हैं कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में कितनी चिड़ियाँ हैं कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में कितने सपने हैं कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे स…
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भूख / अच्युतानंद मिश्र मेरी माँ अभी मरी नहीं उसकी सूखी झुलसी हुई छाती और अपनी फटी हुई जेब अक्सर मेरे सपनों में आती हैं मेरी नींद उचट जाती है मैं सोचने लगता हूँ मुझे किसका ख्याल करना चाहिए किसके बारे में लिखनी चाहिए कविता由Nayi Dhara Radio
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खेजड़ी-सी उगी हो | नंदकिशोर आचार्य खेजड़ी-सी उगी हो मुझ में हरियल खेजड़ी सी तुम सूने, रेतीले विस्तार में : तुम्हीं में से फूट आया हूँ ताज़ी, घनी पत्तियों-सा। कभी पतझड़ की हवाएँ झरा देंगी मुझे जला देंगी कभी ये सुखे की आहें! तब भी तुम रहोगी मुझे भजती हुई अपने में सींचता रहूँगा मैं तुम्हें अपने गहनतम जल से। जब तलक तुम हो मेरे खिलते रहने की सभी सम्भावन…
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद / रामधारी सिंह "दिनकर" रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते; और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। आदमी का स्वप्न? ह…
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पिता के घर में | रूपम मिश्रा पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ! मुझे तो तुम याद रहते हो क्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गया फासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ा पिता के लिए बेटियाँ शरद में देवभूमि से आई प्रवासी चिड़िया थीं या बँसवारी वाले खेत में उग आई रंग-बिरंगी मौसमी घास पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ! शुकुल की बेटी हो! ये आखर मेरे साथ चलता रहा ज…
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पास | अशोक वाजपेयी पत्थर के पास था वृक्ष वृक्ष के पास थी झाड़ी झाड़ी के पास थी घास घास के पास थी धरती धरती के पास थी ऊँची चट्टान चट्टान के पास था क़िले का बुर्ज बुर्ज के पास था आकाश आकाश के पास था शुन्य शुन्य के पास था अनहद नाद नाद के पास था शब्द शब्द के पास था पत्थर सब एक-दूसरे के पास थे पर किसी के पास समय नहीं था।…
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रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम। सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम। शरणत्राणतत्पर सुन लो विनती हमारी। हरकोदण्डखण्डन खरध्वंसी धनुषधारी। दशरथपुत्र कौसलेय जानकीवल्लभ। विश्वव्याप्त प्रभु आपका कीर्ति सौरभ। विराधवधपण्डित विभीषणपरित्राता। भवरोगस्य भेषजम् शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता। सप्ततालप्रभेत्ता सत्यवाचे सत्यविक्रम। आदिपुरुष अद्वितीय अनन्त पराक्रम। रघुप…
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आज पुलियाबाज़ी की २५०वि कड़ी प्रस्तुत है। इस सफर में हमारे साथ जुड़े रहने के लिए शुक्रिया। इस ख़ास मौके पर चर्चा रोज़गार के विषय पर। भारत में समस्या रोज़गार की है या वेतन की? क्या दिक्कतें है जिनकी वजह से भारत में कृषि सेक्टर से मैन्युफैक्चरिंग की तरफ नौकरियों का स्थानांतरण नहीं हो पाया? भविष्य में नौकरियाँ कहाँ से आएगी? इन सब बातों पर चर्चा TeamLease Se…
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पढ़क्‍कू की सूझ | रामधारी सिंह "दिनकर" एक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे, जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे। एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए, "बैल घुमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?" कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है? सिखा बैल को रक्खा इसने, निश्चय कोई ढब है। आखिर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे, "अजी, बिना दे…
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ढहाई | प्रशांत पुरोहित उसने पहले मेरे घर के दरवाज़े को तोड़ा, छज्जे को पटका फिर, बालकनी को टहोका, अब दीवारों का नम्बर आया, तो उन्हें भी गिराया, मेरे छोटे मगर उत्तुंग घर की ज़मीन चौरस की, मेरी बच्ची किसी बची-खुची मेहराब के नीचे सो न जाए कहीं, हरिक छोटे छज्जे को अपने लोहे के हाथ से सहलाया, मेरे आँगन को पथराया उसका लोहा ग़ुस्से से गर्म था, लाल था, उसे…
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उस रोज़ भी | अचल वाजपेयी उस रोज़ भी रोज़ की तरह लोग वह मिट्टी खोदते रहे जो प्रकृति से वंध्या थी उस आकाश की गरिमा पर प्रार्थनाएँ गाते रहे जो जन्मजात बहरा था उन लोगों को सौंप दी यात्राएँ जो स्वयं बैसाखियों के आदी थे उन स्वरों को छेड़ा जो सदियों से मात्र संवादी थे पथरीले द्वारों पर दस्तकों का होना भर था वह न होने का प्रारंभ था…
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यह किसका घर है? | रामदरश मिश्रा "यह किसका घर है?" "हिन्दू का।" "यह किसका घर है?" "मुसलमान का।" यह किसका घर है?" "ईसाई का।” शाम होने को आयी सवेरे से ही भटक रहा हूँ मकानों के इस हसीन जंगल में कहाँ गया वह घर जिसमें एक आदमी रहता था? अब रात होने को है। मैं कहाँ जाऊँगा?由Nayi Dhara Radio
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एक आशीर्वाद | दुष्यंत कुमार जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये रूठना मचलना सीखें। हँसें मुस्कुराएँ गाएँ। हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें उँगली जलाएँ। अपने पाँव पर खड़े हों। जा तेरे स्वप्न बड़े हों।由Nayi Dhara Radio
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बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से | शहंशाह आलम बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से बचपन में हम सब कितनी दफ़ा निकल जाते थे घर से नंगे पाँव बारिश के पानी में छपाछप करने उन दिनों हम कवि नहीं हुआ करते थे ख़ालिस बच्चे हुआ करते थे नए पत्ते के जैसे बारिश में बिना जूते के निकलना अपने बचपन को याद करना है इस निकलने में फ़र्क़ इतना भर है कि माँ की आ…
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कुम्हार अकेला शख़्स होता है | शहंशाह आलम जब तक एक भी कुम्हार है जीवन से भरे इस भूतल पर और मिट्टी आकार ले रही है समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं नदियों के अविरत बहते रहने की कितना अच्छा लगता है मंगलकामनाएं की जा रही हैं अब भी और इस बदमिजाज़ व खुर्राट सदी में कुम्हार काम-भर मिट्टी ला रहा है कुम्हार जब सुस्ताता बीड़ी पीता है बीवी उसकी आग तैयार करती है …
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सागर से मिलकर जैसे / भवानीप्रसाद मिश्र सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है तबीयत वैसे ही भारी हो जाती है मेरी सम्पन्नों से मिलकर व्यक्ति से मिलने का अनुभव नहीं होता ऐसा नहीं लगता धारा से धारा जुड़ी है एक सुगंध दूसरी सुगंध की ओर मुड़ी है तो कहना चाहिए सम्पन्न व्यक्ति व्यक्ति नहीं है वह सच्ची कोई अभिव्यक्ति नहीं है कई बातों का जमाव है सही किसी भी …
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एक बार जो | अशोक वाजपेयी एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर खिल पाएँगे। फूल शब्द या प्रेम पंख स्वप्न या याद जीवन से जब छूट गए तो फिर न वापस आएँगे। अभी बचाने या सहेजने का अवसर है अभी बैठकर साथ गीत गाने का क्षण है। अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है। कुम्हलाने के बाद झुलसकर ढह जाने के बाद फिर बैठ पछताएँगे। एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर ख…
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आँगन | रामदरश मिश्रा तने हुए दो पड़ोसी दरवाज़े एक-दूसरे की आँखों में आँखें धँसाकर गुर्राते रहे कुत्तों की तरह फेंकते रहे आग और धुआँ भरे शब्दों का कोलाहल खाते रहे कसमें एक -दूसरे को समझ लेने की फिर रात को एक-दूसरे से मुँह फेरकर सो गये रात के सन्नाटे में दोनों घरों की खिड़कियाँ खुलीं प्यार से बोलीं- "कैसी हो बहना?" फिर देर तक दो आँगन आपस में बतियाते र…
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शब्द जो परिंदे हैं | नासिरा शर्मा शब्द जो परिंदे हैं। उड़ते हैं खुले आसमान और खुले ज़हनों में जिनकी आमद से हो जाती है, दिल की कंदीलें रौशन। अक्षरों को मोतियों की तरह चुन अगर कोई रचता है इंसानी तस्वीर,तो क्या एतराज़ है तुमको उस पर? बह रहा है समय,सब को लेकर एक साथ बहने दो उन्हें भी, जो ले रहें हैं साँस एक साथ। डाल के कारागार में उन्हें, क्या पाओगे सि…
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बचे हुए शब्द | मदन कश्यप जितने शब्द आ पाते हैं कविता में उससे कहीं ज़्यादा छूट जाते हैं। बचे हुए शब्द छपछप करते रहते हैं मेरी आत्मा के निकट बह रहे पनसोते में बचे हुए शब्द थल को जल को हवा को अग्नि को आकाश को लगातार करते रहते हैं उद्वेलित मैं इन्हें फाँसने की कोशिश करता हूँ तो मुस्कुरा कर कहते हैं: तिकड़म से नहीं लिखी जाती कविता और मुझ पर छींटे उछाल क…
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परिचय | अंजना टंडन अब तक हर देह के ताने बाने पर स्थित है जुलाहे की ऊँगलियों के निशान बस थोड़ा सा अंदर रूह तक जा धँसे हैं, विश्वास ना हो तो कभी किसी की रूह की दीवारों पर हाथ रख देखना तुम्हारे दस्ताने का माप भी शर्तिया उसके जितना निकलेगा।由Nayi Dhara Radio
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सूर्य | नरेश सक्सेना ऊर्जा से भरे लेकिन अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर इंच भर भी हिल नहीं पाते कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा ठेल उढ़का हुआ दरवाजा चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें किसी बीमार की अंधी कुठरिया में सुना सम्पाती उड़ा था इसी जगमग ज्योति को छूने झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत कोई…
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हालिया बजट के बाद कई राज्य सरकारें आंध्र प्रदेश और बिहार राज्य को दिए जा रहे स्पेशल पैकेज के बारे में शिकायत करते हुए पाई गई। पर इससे बड़ा मुद्दा है केंद्र सरकार और राज्यों के बीच वित्तीय वितरण का। 62% राजस्व केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है जब कि राज्य सरकारें 62% खर्चे के लिए जिम्मेदार हैं। यह राजकोषीय असंतुलन राज्यों की अपनी जिम्मेदारियों क…
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लड़की | प्रतिभा सक्सेना आती है एक लड़की, मगन-मुस्कराती, खिलखिलाकर हँसती है, सब चौंक उठते हैं - क्यों हँसी लड़की ? उसे क्या पता आगे का हाल, प्रसन्न भावनाओं में डूबी, कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है, सारे संबंध मन से निभाती ! कोई नहीं जानता, जानना चाहता भी नहीं क्या चाहती है लड़की मन की बात बोल दे तो बदनाम हो जाती है लड़की और एक दिन एक घर से दूसरे घर, अन…
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जरखरीद देह - रूपम मिश्र हम एक ही पटकथा के पात्र थे एक ही कहानी कहते हुए हम दोनों अलग-अलग दृश्य में होते जैसे एक दृश्य तुम देखते हुए कहते तुमसे कभी मिलने आऊँगा तुम्हारे गाँव तो नदी के किनारे बैठेंगे जी भर बातें करेंगे तुम बेहया के हल्के बैंगनी फूलों की अल्पना बनाना उसी दृश्य में तुमसे आगे जाकर देखती हूँ नदी का वही किनारा है बहेरी आम का वही पुराना पे…
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ख़ालीपन | विनय कुमार सिंह माँ अंदर से उदास है सब कुछ वैसा ही नहीं है जो बाहर से दिख रहा है वैसे तो घर भरा हुआ है सब हंस रहे हैं खाने की खुशबू आ रही है शाम को फिल्म देखना है पिताजी का नया कुर्ता सबको अच्छा लग रहा है लेकिन माँ उदास है. बच्चा नौकरी करने जा रहा है कई सालों से घर, घर था अब नहीं रहेगा अब माँ के मन के एक कोने में हमेशा खालीपन रहेगा !…
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हम न रहेंगे | केदारनाथ अग्रवाल हम न रहेंगे- तब भी तो यह खेत रहेंगे; इन खेतों पर घन घहराते शेष रहेंगे; जीवन देते, प्यास बुझाते, माटी को मद-मस्त बनाते, श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे! हम न रहेंगे- तब भी तो रति-रंग रहेंगे; लाल कमल के साथ पुलकते भृंग रहेंगे! मधु के दानी, मोद मनाते, भूतल को रससिक्त बनाते, लाल चुनरिया में लहराते अंग रहेंगे।…
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तन गई रीढ़ | नागार्जुन झुकी पीठ को मिला किसी हथेली का स्पर्श तन गई रीढ़ महसूस हुई कन्धों को पीछे से, किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें तन गई रीढ़ कौंधी कहीं चितवन रंग गए कहीं किसी के होंठ निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर तन गई रीढ़ गूँजी कहीं खिलखिलाहट टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा भर गए कर्णकुहर तन गई रीढ़ आगे से आया अलकों के तैलाक्त परिमल का झो…
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मृत्यु - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मेरे जन्म के साथ ही हुआ था उसका भी जन्म... मेरी ही काया में पुष्ट होते रहे उसके भी अंग में जीवन-भर सँवारता रहा जिन्हें और ख़ुश होता रहा कि ये मेरे रक्षक अस्त्र हैं दरअसल वे उसी के हथियार थे अजेय और आज़माये हुए मैं जानता था कि सब कुछ जानता हूँ मगर सच्चाई यह थी कि मैं नहीं जानता था कि कुछ नहीं जानता हूँ... मैं सोचता था फ…
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इच्छाओं का घर | अंजना भट्ट इच्छाओं का घर- कहाँ है? क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना? इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर पर किसने दी हैं ये इच्छाएं? क्या पिछले जन्मों से चल कर आयीं या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं? पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं? क्या इच्छाएं मार डालूँ? या फिर उन पर काबू पा लूं? और यदि हाँ तो भी क…
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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘आज़ादी की राह’ के इस ख़ास एपिसोड पर हम समझते हैं हमारे संविधान सभा के कामकाज के बारे में। संविधान सभा का गठन कैसे हुआ? सभा में निर्णय कैसे लिए जाते थे? बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान सभा में क्या भूमिका निभाई? क्या हमारे संविधान को एक कोलोनियल संविधान कहा जा सकता है? इन सब दिलचस्प सवालों पर विस्तार से चर्चा प्रोफेसर अच्युत …
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स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, स्वागत करती हूँ तेरा। तुझे देखकर आज हो रहा, दूना प्रमुदित मन मेरा॥ आ, उस बालक के समान जो है गुरुता का अधिकारी। आ, उस युवक-वीर सा जिसको विपदाएं ही हैं प्यारी॥ आ, उस सेवक के समान तू विनय-शील अनुगामी सा। अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥ आशा की सूखी लतिकाएं तुझको प…
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